ये दुनियाँ होने को ते एक ही हें । मे भि एक हुँ । मगर दुनियाँ और मेरे बीच मै बहुत सारे डेफिनेशन हैं । तरह तरह कि ।
इफ मे साहित्यके स्टूडेण्ट के नजरसे दुनियाँको देखुँ तो शब्दसागरमे डुब जाता हुँ । शब्द इतने हे कि मेरे समझ से कहि गुणे बाहर ।
पावरके नजर सें देखुँ ते मे कुछ नहीं हुँ । एक छोटा सा किड्नी गया तो जीन्दगी गयाँ सिधे उपरवालाके पास ।
आम आदमी के माझ अपुन को देखो तों बुरी तरह फस जाता हुँ । एक खराब आदमी मेरा पंूगी बजा देता हे । वो भि धुल चटाके ।
जब मे कम्प्यूटर के आगे खुदको आईटी स्टूडेण्ट सम्झूतो ये दुनियाँ तीन अल्फाबेट डब्लूडब्लूडब्लू के लायक भि नही हे । एक छोटा सा डट और बिन्दू दुनियाँके लिए काफी हे । सायद अब तो एक डट भि दुनियाँको लायक नहीं
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